5 Incredible Facts! Ancient India That Will Blow Your Mind!

Ancient Indian Science Influenced Modern Science?

क्या वैदिक सभ्यता सच में एडवान्स थी ? Was Ancient Indian Science Advanced? इस शृंखला का यह दूसरा भाग है। आइए जानते हैं कि मॉडर्न साइन्स की और किन-किन बातों या सिद्धांतों के बारे में सनातन हिन्दू ग्रंथों या पुस्तकों में पहले से  ही लिखा हुआ है । 

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यह बताता है कि हर मैटर को ऊर्जा में बदला जा सकता है। मैटर या ऊर्जा न तो उत्पन्न किया जा सकता है न ही नष्ट।  केवल रूपांतरित किया जा सकता है। यह बात तो भगवद गीता में पहले से ही लिखी हुई है-

न जायते म्रियते वा कदाचिन,

नायं भूत्वा भविता वा न भूयः,

अजो नित्यं शाश्वतो अयं पुराणों,

न हन्यते हन्यमाने शरीरह ।।

अर्थात “आत्मा न तो उत्पन्न होती है न ही नष्ट।  आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नष्ट होने से आत्मा नष्ट नहीं होती। हमारे ऋषियों ने आत्मा के रूप में कहा, विज्ञान ने मैटर या ऊर्जा के रूप में। भावार्थ एक ही है केवल कहने का ढंग अलग है। 

What Ancient India Says About Particles & Nature:

विज्ञान कहता है कि हर मैटर एटम से बना है और एटम बना है तीन पार्टिकल्स से – प्रोटोन, इलेक्ट्रॉन और न्यूट्रॉन । प्रोटॉन पर धनात्मक आवेश यानि पाज़िटिव एनर्जी, इलेक्ट्रॉन पर ऋणात्मक आवेश यानि निगेटिव एनर्जी और न्यूट्रॉन पर कोई आवेश नहीं होता।  हिन्दू ग्रंथों ने इसे इस प्रकार से कहा कि हर पदार्थ की तीन प्रकृति होती है, सत, तम और रज। ये तीन गुण ही सभी जीवित प्राणियों और संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वभाव और व्यवहार को आकार देते हैं।

Ancient Indian Science VS Modern Western Science

सत सकारात्मकता, पवित्रता और  अच्छाई का गुण है। रज गतिविधि, जुनून और गतिशीलता का गुण है। तम नकारात्मकता,  अंधकार, जड़ता और अज्ञानता  का गुण है। हिंदू धर्म के अनुसार सभी प्राणी और चीजें इन तीन गुणों की अलग अलग मात्राओं से बनी हैं, जो एक दूसरे से संपर्क करते हैं और प्रभावित करते हैं।  

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बचपन से ही हमें पढ़ाया गया है कि हवाई जहाज का आविष्कार सबसे पहले राइट ब्रदर्स ने किया था।  ये भी सफेद झूठ है। वायुयान या विमान बनाने के बारे में सबसे पहले लिखा था – महर्षि भरद्वाज जी ने । उनके लिखे हुए शास्त्र ‘विमान शास्त्रम‘ में विमान बनाने की पूरी विधि बताई गयी है। आइए विमान शास्त्रम के कुछ संस्कृत के सूत्रों का हिन्दी अर्थ समझते हैं –

वेग साम्याद विमानोण्ड जानामिति।   अर्थात अंडजों यानि पक्षियों के वेग के समान जाने वाले को विमान कहते हैं। 

तस्मात्तद्वेरबीजादिरक्षणार्थ कपादिना। ऋतुशक्तयनुसारेण वस्त्रभेदा निरूपिता।। 

विभिन्न ऋतुओं में होने वाले मौसमी बदलाव  और सूर्य की किरणों के प्रभाव से बचने के लिए विमान में बैठने वालों को अलग प्रकार के कपड़े बनाए जाते थे। इस संस्कृत सूत्र में इस बात का जिक्र किया गया है-

वियत्तरङ्गपवन रौद्री सञ्जातशक्तय,

ऋतुकालानुसारेण खेटयानविनाशका। 

तास्समाकृष्य वेगेन नाशयित्वा खमण्डले,

यत् स्वशक्त्या पालयति व्योमयानान् विशेषत,

तच्छक्त्या कर्ष रणदर्पणयन्त्रमिति कीर्त्यते। 

अर्थात वियतरङ्ग यानि  आकाश के स्तरों मण्डलों और पवन रौद्री यानि वायु की वेग पंक्तियों से उत्पन्न शक्तियां ऋतुकाल के अनुसार विमान का विनाश करने वाली हैं। उन्हें अपने वेग से खींच कर आकाश में नष्ट करके जो अपनी शक्ति से विमानों की रक्षा करता है वह शक्तयाकर्षण दर्पण यन्त्र कहा जाता है।  

द्वादशाङ्गुलविस्तीर्ण द्वादशाङ्गुलमुन्नतम्,

कुर्याद् वातायनीलोहात् पचनालान् यथाविधि। 

तेन यानस्थयन्तृणां घूमनाशात् सुखं भवेत्,

तस्माद् विमाने तन्नालपञ्चक विधिवन्त्यसेत। 

यह सूत्र विमान शास्त्रम में १३ लाइनों का है, हमने केवल ४ लाइने ही उद्धृत की हैं । जिसका अर्थ है- 

१२ अङ्गुल चौडे १२ अङ्गुल ऊंचे वातायनी लोह से पांच नालें बनावें । एक एक धूम के प्रमाण में पांचों नालमूलों में लगाकर विमान के वामपार्श्व भाग में कम से कम पाँच सन्धियों में शास्त्र से पांच नालों को संस्थापित करें । पांचों नालों के मुख पूर्व आदि दिशाओं में कूम से विधिवत् स्थापित करें।  ततपश्चात् ऊपर में जैसे नालमूलस्थ मणियां ऊर्ध्वमुख  ऊपर की ओर धीरे धीरे घूंए को खींचकर नाल मुख में स्थित मुख छिद्रों में जोड दें।   फिर वातायनी नालमुखों से धुँवा बाहिर वेग से सर्वथा लय को प्राप्त हो जाता है। इससे धूमनाश से विमान में स्थित यात्रियों को सुख होता है अतह  विमान में वह ५ नाल विधिवत लगावें ।। 

 हमने कुछ ही पंकियाँ उद्धृत किए हैं, आप चाहें तो इंटरनेट से विमान शास्त्रम की पूरी पुष्तक डाउनलोड कर सकते हैं। इस शास्त्र में विमान बनाने की पूरी विधि बताई गई है। इसी शास्त्र को पढ़कर  18९५ में महाराष्ट्र के शिवकर बापूजी तलपड़े जी ने विमान बनाया था और उड़ा कर दिखाया भी था। लेकिन उस समय हमारे देश में अंग्रेजी हुकूमत के कारण इस तथ्य को दबा दिया गया।।  इस घटना के ७ ८ साल बाद राइट ब्रदर्स ने विमान बनाया और उनका नाम इतिहास के पन्नों में लिख दिया गया।

दोस्तो इस पर एक हिन्दी मूवी भी बनी है। मूवी का नाम है, हवाईजादा, जिसमें आयुष्मान खुर्राना ने शिवकर बापूजी का रोल प्ले किया है।   

ओम मंत्र (“Sound of Universe is OM”, says Ancient India):- 

ओम  भूर्भुवह  स्वह तत्सवितुर  वरेण्यम, भर्गोदेवस्य धीमहि, धियोयोनह  प्रचोदयात। 

ओम  तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तनो  रुद्रह  प्रचोदयात, ओम शांति ओम।  

Om Sound Was First Heard By Indian Rishis (Ancient India)

हमारे ऋषियों ने सबसे पहले पता किया था कि ब्रह्माण्ड में एक ध्वनि गूंजती है जो ओम जैसी है । इसीलिए हिन्दुओं के लगभग सभी मन्त्रों में ओम का प्रयोग होता है। पश्चिमी देशों ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया। और कहा कि ऊपर स्पेस में हमारा स्पेस स्टेशन है।  लेकिन हमें कभी कोई ध्वनि नहीं सुनाई पड़ती। अगस्त २०२२ में नासा के वैज्ञानिकों ने ऐसी डिवाइस बना ली है जिसने अंतरिक्ष की ध्वनि को कैप्चर कर लिया है। यह ध्वनि ओम जैसी ही है। इस ध्वनि को आप यूट्यूब पर सुन सकते हैं।

योग साधना और तपस्या के पथ पर चलकर मानव जीवन और इस दुनिया की सच्चाई एवम  रहस्यों  का पता लगाया जा सकता है। योग साधना के ८ चरण हैं-   यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।  हमारे ऋषि मुनि इसीलिए तपस्या और ध्यान करते थे। माना जाता है कि  सबसे पहले विश्वामित्र और वशिष्ठ जी ने तपस्या करते समय ओम ध्वनि को सुना था ।

पाइथागोरस प्रमेय नहीं, बौधायन प्रमेय (Pythagoras Theorem Is Taken From Ancient India):-

बौधायन हमारे देश भारत के प्राचीन गणितज्ञ और शुल्ब सूत्र तथा श्रौतसूत्र के रचयिता थे। ज्यामिति के विषय में यूक्लिड की ज्यामिति को प्रमाणिक मानते हुए सारे विश्व में पढ़ाई जाती है। मगर यूनानी ज्यामितिशास्त्री यूक्लिड से पूर्व ही भारत में कई रेखा गणितज्ञ ज्यामिति के महत्वपूर्ण नियमों की खोज कर चुके थे।  उन रेखा गणितज्ञों में बौधायन का नाम सर्वोपरि है। उस समय भारत में रेखा गणित या ज्यामिति को शुल्व शास्त्र कहा जाता था। बौधायन के सूत्र वैदिक संस्कृत में हैं तथा धर्म, दैनिक कर्मकाण्ड, गणित आदि से सम्बन्धित हैं। वे कृष्ण यजुर्वेद के तैत्तिरीय शाखा से सम्बन्धित हैं। सूत्र ग्रन्थों में सम्भवतः ये प्राचीनतम ग्रन्थ हैं।

 इनकी रचना सम्भवतः ८वीं ७वीं शताब्दी ईसा पूर्व हुई थी। समकोण त्रिभुज से सम्बन्धित पाइथागोरस प्रमेय सबसे पहले महर्षि बोधायन की देन है। पायथागोरस का जन्म तो बौधायन जी के कई सदियों बाद हुआ था । बौधायन का लिखित सूत्र है:-

दीर्घचतुरश्रस्याक्ष्णया रज्जुः पार्श्वमानी, तिर्यग् मानी च, यत् पृथग् भूते कुरूतस्तदुभयं करोति ।।

Baudhayan Theorem (Ancient India)

अर्थात, विकर्ण पर कोई रस्सी तानी जाय तो उस पर बने वर्ग का क्षेत्रफल ऊर्ध्व भुजा पर बने वर्ग तथा क्षैतिज भुजा पर बने वर्ग के योग के बराबर होता है। यह कथन ‘पाइथागोरस प्रमेय’ का सबसे प्राचीन लिखित कथन है।

 बोधायन जी ने ही सबसे पहले पाइ के बारे में लिखा था । सुल्बसूत्र में लिखा है कि:-

किसी वृत की परिधि वृत के व्यास के  लगभग तीन गुना होती है।  अर्थात किसी भी वृत की परिधि को अगर वृत के व्यास से भाग दिया जाए तो हमेशा एक स्थिर मान ही आएगा, जिसे बाद में पाइ नाम दिया गया। बोधायन के बाद आर्यभट्ट ने पाइ का सबसे सटीक मान बताया था, जो इस सूत्र में लिखा गया है। 

चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्त्राणाम्। 

अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्य आसन्नौ वृत्तपरिणाहः ।। 

अर्थात १०० में चार जोड़ें, आठ से गुणा करें और फिर ६२००० जोड़ें। इस नियम से २०००० परिधि के एक वृत्त का व्यास ज्ञात किया जा सकता है।

(100 + 4) x 8 + 62,000 = 62,832

Pie = 62832/20000=3.14 

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