क्या वेदों में साइंस है?
क्या वाकई में वेदों में, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अर्थववेद और सामवेद में विज्ञान छिपा है? Many ancient texts mention the hidden science in Vedas, but where is it exactly? स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा क्यों दिया था? क्या वेदों में कोई वैज्ञानिक तथ्य लिखे गए हैं? क्या वैदिक साइन्स अपने टाइम से एडवान्स था? क्या वेस्टर्न साइन्स की अधिकांश चीजें हमारे सनातन हिन्दू धर्म ग्रंथों में पहले से ही लिखा था?
इस टॉपिक पर पिछले काफी वर्षों से बहस होती आ रही है। बहुत से लोग पक्ष में हैं और दूसरे बहुत से लोग विपक्ष में भी। बहुत सारे अच्छे पढ़े लिखे लोग विपक्ष में बोल रहे हैं कि वेदों में कोई साइंस नहीं है। यही प्रश्न एक श्रोता ने सत्र के दौरान आचार्य प्रशांत से किया। वैसे तो आचार्य प्रशांत काफी हद तक लॉजिकल तर्कसंगत बातें करते हैं और लोगों को उन्हें सुनना भी चाहिए, लेकिन इस प्रश्न का उन्होंने सही ढंग से न्यायपूर्ण जवाब नहीं दिया । उन्होंने कहा कि अज्ञानता और मूर्खता के चलते बहुत सारे लोग अपने देश और कम्यूनिटी का महिमा-मंडन करने के लिए बिना पढे कुछ भी अनाप-शनाप बोल रहे हैं कि वेदों में साइन्स छिपा है। वह आगे बोलते हैं कि वेदों में अगर कोई साइन्स है तो उसका प्रमाण दीजिए कि ऋग्वेद की किस ऋचा में, किस मण्डल में? ऐसा ही कुछ मानना है जाने माने मोटिवेशनल स्पीकर संदीप माहेश्वरीजी का। वह कहते हैं कि आज के मॉडर्न टाइम में संस्कृत सीखना और बोलना बेवकूफी है। उनके अनुसार संस्कृत भाषा को स्कूलों के पाठ्यक्रम से हटा देना चाहिए क्योंकि सभी संस्कृत पुस्तकों का अनुवाद तो हिन्दी और अंग्रेजी में हो चुका है। इसलिए वर्तमान समय में संस्कृत सीखने का कोई औचित्य है ही नहीं।
वेदों में साइन्स है या नहीं और संस्कृत भाषा का अनादिकाल से ही कितना महत्व रहा है ये अब हम आपको समझाते हैं वो भी पूरे प्रमाण के साथ।

ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद में प्राकृतिक चीजों को देवताओं का रूप देकर उनके आहवाहन करने के मंत्र हैं। यहाँ पर आपको देवता का अर्थ भी समझना चाहिए। देवता उन्हें कहते हैं जो आपको कुछ दें। जिससे आपका जीवन चल सके। और बदले में वो आपसे कुछ ना मांगे। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश, इन पंच-महाभूतों से ये सृष्टि बनी है। इनके बिना इस पृथ्वी में जीवन संभव नहीं है। इसलिए वैदिक काल के ऋषि इन सभी प्राकृतिक चीजों की स्तुतियाँ करके उनका आहवाहन करते थे। वैदिक काल में यज्ञ में इन्द्र और वरुण देव का संस्कृत मंत्रों का उच्चारण कर इन प्राकृतिक चीजों का आहवाहन करके वर्षा होती थी। वर्तमान समय में शायद आपको हँसी आए लेकिन इससे भी बड़े बड़े कारनामे हमारे देश में वैदिक सभ्यता में हुए हैं। इस ब्रह्मांड की सभी चीजें एक दूसरे से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हैं। हर एक चीज का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है। हर चीज की अपनी ध्वनि तरंगें हैं। ध्वनि तरंगों का सर्किट पूरा होने पर ही कॉज़ और इफेक्ट होता है।
ऑस्ट्रेलियन लेखिका और फिल्म निर्माता रॉनडे बन की किताब द सीक्रेट (The Secret) इसी बात पर आधारित है। जिसे लॉ ऑफ अट्रैक्शन (Law Of Attraction) भी कहते हैं। सकारात्मक सोच या भाव की शक्ति आपको कुछ भी करने में मदद कर सकती है जो आप चाहते हैं। लेकिन इसके लिए आपकी भाव तरंगों का सर्किट उस वस्तु से पूरा होना जरूरी है जिससे आपको यह वस्तु मिले। जैसे यदि किसी जगह सूखा पड गया और वहाँ के लोग वर्षा चाहते हैं तो वहाँ के लोगों को वर्षा, जिसे वरुण देव भी कहा जाता है, की भाव तरंगों का आहवाहन करना पडेगा। जब यह आहवाहन वर्षा की तरंगों से मैच हो जाएगा तो उस क्षेत्र में बारिश हो जाएगी। अब हम आपको हमारे चारों वेदों के कुछ संस्कृत मंत्रों में छिपे साइन्स को बताते हैं:-
Hidden Science In Rigveda
- आदित्ते विश्वे क्रतुं जुषन्त शुष्काद्यद्देव जीवो जनिष्ठाः । भजन्त विश्वे देवत्वं नाम ऋतं सपन्तो अमृतमेवैः ॥
अर्थात हे अग्निदेव जब आप सूखे काष्ठ के घर्षण से उत्पन्न हुए, तब सभी देवगणों ने यज्ञ कार्य सम्पन्न किये। हे अविनाशी देव ! आपका अनुगमन करके ही वे देवगण देवत्व को प्राप्त कर सके हैं।।
हम सभी ने इतिहास में पढ़ा है कि आदिमानव ने पत्थरों के रगड़ से आग पैदा करना सीखा। इस मंत्र में सूखे लकड़ी के बुरादों पर लकड़ी के घर्षण से आग उत्पन्न करने के बारे मे बताया गया है। ये आपने Discovery पर प्रसारित TV Show “Man Vs Wild” में भी देखा होगा। Bear Grylls जंगलों में सूखे लकड़ी के बुरादे पर लकड़ी के घर्षण से ही आग उत्पन्न करता था। अब आप यहाँ पर पूछ सकते हैं कि इसमें विज्ञान क्या है? हमारा उत्तर है कि माचिस की तीली पर घर्षण करने से आग उत्पन्न होती है – इसे आप जब विज्ञान कहते हो तो फिर आज से कई हजारों वर्ष पहले ऋषियों ने बिना माचिस के आग उत्पन्न करने की विधि खोज निकाली थी, क्या वह विज्ञान नहीं था?
2. तुग्रो ह भुज्युमश्विनोदमेघे रयिं न कश्चिन्ममृवाँ अवाहाः। तमूहथुर्नौभिरात्मन्वतीभिरन्तरिक्षप्रुद्भिरपोदकाभिः।।
इस ऋचा में प्राचीन समय में हुए 1 युद्ध के बारे में लिखा है कि राजा तुग्र ने, अपने पुत्र राजकुमार भुज्यु को शत्रुओं पर आक्रमण करने के लिए गहरे महासागर में उतरने की आज्ञा इस प्रकार दी, जैसे मरणासन्न मनुष्य धन की इच्छा त्याग देता है। अर्थात पुत्र मोह को त्यागकर अपने पुत्र को युद्ध के लिए महासागर में उतरने के लिए कहा। आप दोनों अश्विनी कुमारों ने अंतरिक्षयानों, नौकाओं और पनडुब्बियों से राजकुमार भुज्यु की सहायता की थी।। दोस्तो अन्तरिक्षप्रुद्भिः का अर्थ अंतरिक्ष यान है और अपोदकाभिः का अर्थ ऐसी नौका से है जिसमें पानी अन्दर प्रविष्ट ना हो सके, यानि पनडुब्बी। ऋग्वैदिक समय में आर्यवर्त के लोग पनडुब्बी जैसी नौका से भली भांति परिचित थे ।
3. युवं धेनुं शयवे नाधितायापिन्वतमश्विना पूर्व्याय । अमुञ्चतं वर्तिकामंहसो निः प्रति जङ्घां विश्पलाया अधत्तम्।।
इस ऋचा में अश्विनी कुमारों की स्तुति करते हुए कहा गया है कि प्राचीन समय में आपने ऋषि शयु की गाय को दुधारू बनाया था, बटेर को भेड़िये के मुख से मुक्त किया था और विश्पला की भग्न टांग के स्थान पर लोहे की टांग प्रत्यारोपित की थी। इस ऋचा से पता चलता है कि ऋग्वैदिक काल के ऋषि शल्य चिकित्सा से परिचित थे।
4. सप्त युञ्जन्ति रथमेकचक्रमेको अश्वो वहति सप्तनामा । त्रिनाभि चक्रमजरमनर्वं यत्रेमा विश्वा भुवनाधि तस्थुः।।
इस ऋचा में सूर्य देव की स्तुति करते हुए कहा गया है कि सूर्य के सातों घोड़े एक चक्र वाले रथ से जुड़े हैं। सात नामों अर्थात 7 रंगों वाला एक किरणरूपी अश्व इस चक्र को चलाता है। तीन लोकों (द्युलोक अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी) अथवा धुरियों वाला यह काल चक्र सतत गतिशील अविनाशी और शिथिलता रहित है। इसी चक्र के अन्दर समस्त लोक विद्यमान हैं।।
ऋग्वेद की इस ऋचा में सूर्य के सात घोड़े बताए गए हैं। जिसका अभिप्राय सूर्य की सात रंगों से है। ऋग्वेद आज से तीन-चार हजार वर्ष से भी पहले का है। लेकिन पश्चिमी देशों में न्यूटन ने 16 वीं सदी में पता किया कि सूर्य की किरणों में सात रंग होते हैं।

ऋग्वेद की इस ऋचा में सूर्य को अजरम कहा गया है, जिसका अर्थ होता है जो कभी वृद्ध या जीर्ण ना हो। सूर्य की महत्ता इस मंत्र में बताई गई है कि सूर्य के बिना जीवन असंभव है। आधुनिक विज्ञान भी सूर्य के बारे में यही बताता है। इस ऋचा के अंतिम शब्दों, “यत्र इमा विश्वा भुवना अधि तस्थुः” में कहा गया है कि सूर्य के चक्र के अन्दर सभी लोक विद्यमान हैं। अर्थात भूलोक यानि पृथ्वी की उत्पत्ति भी सूर्य से ही हुई है।
Hidden Science In Yajurveda
- उपप्रयन्तो अध्वरं मन्त्रं वोचे माग्नये आरे अस्मे च शृण्वते ॥
अर्थात यज्ञ के समीप उपस्थित होते हुए (जीवन में यज्ञीय सिद्धान्तों का समावेश करते हुए) हम सुदूर स्थान से भी कथन (भाव) को सुनने वाले अग्निदेव के निमित्त स्तुति मंत्र समर्पित करते हैं। इस मंत्र से आपको नहीं लगता है कि टेलीफोन के आविष्कार का विचार इंसान को आया होगा, कि हमसे बहुत दूर बैठा व्यक्ति भी हमारी बातें सुन सकता है।
2. अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या ऽअयम् अपा रेता सि जिन्वति ।।
अर्थात यह अग्निदेव, (आदित्यरूप में) द्युलोक के शीर्षरूप सर्वोच्च भाग में विद्यमान होकर, जीवन का संचार करके, धरती का पालन करते हुए जल में जीवन शक्ति का संचार करते हैं। इस मंत्र में सौर ऊर्जा से पृथ्वी पर जीवन संचार के वैज्ञानिक तथ्य को बताया गया है। यह बताया गया है कि सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं हो सकता है।
Hidden Science In Atharvaveda
- अमूर्या उप सूर्ये याभिर्वा सूर्यः सह ता नो हिन्वन्त्वध्वरम् ।।
अर्थात सूर्य के सम्पर्क में आकर पवित्र हुआ वाष्पीकृत जल, उसकी शक्ति के साथ पर्जन्य – वर्षा के रूप में हमारे सत्कर्मों को बढ़ाए, यज्ञ को सफल बनाए ।। इससे बड़ा विज्ञान का प्रमाण और क्या हो सकता है?

2. उपजीका उद्धरन्ति समुद्रादधि भेषजम् । तदास्त्रावस्य भेषजं तदु रोगमशीशमत् ।।
अर्थात धरती के नीचे विद्यमान जलराशि से व्याधि नष्ट करने वाली ओषधि रूप बमई (दीमक की बॉंबी) की मिट्टी ऊपर आती है, यह मिट्टी आस्राव की ओषधि है । यह अतिसार आदि व्याधियों को शमित (शान्त) करती है ।।
इस मंत्र में मेडिकल साइन्स का जिक्र है। मेडिकल साइन्स का मतलब केवल टैबलेट, कैप्सूल या वैक्सीन नहीं होता। ऐसी कोई भी पद्धति जिससे आपकी बीमारी ठीक हो जाए वो मेडिकल साइन्स है ।
Hidden Science In Samveda

- अयुक्त सप्त शुन्ध्युवः सूरो रथस्य नव्यः ताभिर्याति स्वयुक्तिभिः ।।
अर्थात सूर्यदेव शुद्ध करने वाले सात घोड़ों (सतरंगी किरणों) को अपने रथ में जोड़े हुए हैं। रथ चलाने वाली, घोड़े रूपी किरणों से अपनी शक्तियों के द्वारा सूर्यदेव सब जगह जाते हैं ।
वैज्ञानिक सन्दर्भ में सूर्य की सात किरणों को इस क्रम में रखा गया है- VIBGYOR, यानि बैगनी नीला आसमानी हरा पीला नारंगी और लाल। इस मन्त्र में इन्हें ही सूर्य के सात घोड़े कहा गया है।
वेदों में केवल मंत्र ही क्यों हैं?
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार परब्रह्म परमेश्वर के मन में सृष्टि रचने का भाव उत्पन्न हुआ। इसीलिए इस सृष्टि को प्रभु की माया या लीला कहते हैं। इस जगत में सब कुछ भावमय है। हमारी जिंदगी में जो कुछ भी होता है वो या तो हमारी या दूसरों की भावनाओं की परिणति है। मन की कल्पनाएं और मस्तिष्क के विचार ही हमारे कर्मों में परिलक्षित होते हैं। जिस तरह विद्युत की तरंगों का सर्किट पूरा होने से ही विद्युत काम करती है ठीक उसी प्रकार हमारी भावनाओं की तरंगों का भी सर्किट होता है। जिस प्रकार की भाव तरंगें हम इस जगत में उत्पन्न करते हैं उसी के अनुरूप हमें किसी न किसी माध्यम से उसका फल मिलता है। हमारी भाव तरंगों का सर्किट पूरा होने पर ही हमें फल मिलता है। जैसे जब हम किसी से बात करते हैं तो बातचीत तभी हो पाती है जब हम एक दूसरे के मुँह से निकले ध्वनि तरंगों को समझें। क्योंकि तभी सर्किट पूरा होगा। बोलना यानि जो हम मुँह से शब्दों का उच्चारण करते हैं वो और कुछ नहीं बल्कि ध्वनि ही है। केवल शब्दों का उच्चारण करना ही काफी नहीं है बल्कि दूसरे व्यक्तियों को उन शब्दों का अर्थ भी पता होना चाहिए। इसी को सर्किट पूरा होना कहते हैं।

इसीलिए केवल हिन्दी भाषा को जानने वाला व्यक्ति किसी अंग्रेजी भाषी व्यक्ति से बात नहीं कर सकता। क्योंकि हर भाषा को बोलने पर अलग अलग ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं। जब तक दोनों लोगों की ध्वनि तरंगों का सर्किट, स्पीकर और लिसनर के रूप में पूरा नहीं होगा तब तक बातचीत नहीं हो पाएगी। यह बात केवल इंसानों पर ही नहीं बल्कि इस पूरे चराचर जगत की सभी चीजों पर लागू होती है। इस ब्रह्मांड की किन्हीं भी 2 चीजों के मध्य सेन्डर और रिसीवर या स्पीकर और लिस्नर का तादात्म्य तभी स्थापित हो सकता है जब उन दोनों में से कोई एक (या दोनों) दूसरे से संपर्क करने के लिए दूसरे की भाव तरंगों का आह्वान करे। अगर दूसरे की भाव तरंगें आहवाहित हो जाती है तो उन 2 चीजों के मध्य सेन्डर और रिसीवर भाव तरंगों का सर्किट पूरा हो जाएगा, और दोनों के मध्य कम्युनीकेसन या आदान-प्रदान शुरू हो जाएगा।
हमारे देश के ऋषि-महर्षि आज से कई हजार वर्ष पहले भाव तरंगों के सर्किट के इस विज्ञान को समझ गए थे। इसीलिए उन्होंने प्राकृतिक चीजों जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, सूर्य, वायु, पेड़-पौधे आदि को मूर्त रूप देकर उनकी पूजा अर्चना और स्तुतियाँ करके आहवाहन करना शुरू किया। भावनाओं को अभिव्यक्त करने और संप्रेषित करने का सबसे असरदार माध्यम है, गायन । इसीलिए संस्कृत के मंत्र गद्य के रूप में नहीं बोले जाते बल्कि गायन के रूप में बोले जाते हैं। वैदिक काल में वेदों में लिखे हुए संस्कृत के मंत्रों को काव्य रूप में गाकर प्राकृतिक शक्तियों की स्तुतियाँ करके उनका आहवाहन किया जाता था। काव्य गद्य से अधिक प्रभावी होता है।
इसका उदाहरण आप अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते हैं। आप अपने मूड के अनुसार ही गाने सुनते हैं और फिर गाने सुनकर आपको सुकून मिलता है। जिस किसी को भी लगता है की वेदों में कोई साइन्स नहीं है तो उसने केवल वेद रटे हैं, समझे नहीं। अगर आपको लगता है कि E=MC^2 या F=MA ही साइन्स है तो फिर आप साइन्स भी अच्छी तरह नहीं समझे। साइन्स के ये सूत्र 100-200 साल पहले की भाषा के अनुसार ही अभिव्यक्त हुए हैं । आज से 5 – 10 हजार वर्ष पहले हमारे देश के ऋषियों की भाषा संस्कृत थी और उन्होंने उस समय के अनुसार अपने ज्ञान को अभिव्यक्त किया । अभिव्यक्त करने का माध्यम कुछ भी हो सकता है इसलिए वो महत्वपूर्ण नहीं है। बल्कि महत्वपूर्ण है रिजल्ट। अपने विचारों या भाव को क्या आप मनोवांछित परिणाम में परिवर्तित कर पा रहे हैं या नहीं, ये महत्वपूर्ण है।
ॐ अग्नि मीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् होतारं रत्नधातमम् ॥
अर्थात हम अग्निदेव की स्तुति करते हैं। जो अग्निदेव यज्ञ के पुरोहित, देवता, ऋत्विज् (समयानुकूल यज्ञ का सम्पादन करने वाले), होता (देवों का आवाहन करने वाले) और याजकों को रत्नों से (यज्ञ के लाभों से) विभूषित करने वाले हैं।
अग्निः पूर्वेभिर्ऋषिभिरीड्यो नूत नैरुत स देवाँ एह वक्षति ॥

अर्थात जो अग्निदेव पूर्वकालीन ऋषियों (भृगु, अंगिरादि) द्वारा प्रशंसित हैं। जो आधुनिक काल में भी ऋषि कल्प वेदज्ञ विद्वानों द्वारा स्तुत्य हैं, वे अग्निदेव इस यज्ञ में देवों का आवाहन करें ॥
ऋग्वेद की इन दो मंत्रों में अग्नि की स्तुति अग्नि देव के रूप में की गई है। पंच महाभूतों से ये पूरा ब्रह्मांड बना है जिनमें अग्नि सबसे महत्वपूर्ण है। अग्नि सूर्य का भी प्रतीक है। क्योंकि सूर्य में अग्नि ही है। जिस प्रकार सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन असंभव है उसी प्रकार कोई भी यज्ञ अग्नि के बिना नहीं हो सकता।
मॉडर्न साइन्स के कई सिद्धांतों और खोजों के बारे में हमारे सनातन हिन्दू धर्म के ग्रंथों और पुष्तकों में पहले से ही लिखा था या नहीं, या हमारा वैदिक साइन्स एडवांस था या नहीं, ये पोस्ट इस शृंखला का पहला भाग है।
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