क्या आपको संस्कृत भाषा और हिन्दू धर्मग्रंथ (Hindu Scriptures) का महत्व जानना है? क्या आपको पता है कि वर्तमान समय में संस्कृत भाषा अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, जापान और रूस के स्कूल कॉलेज में पढ़ाई जाती है। जर्मनी के 14 यूनिवर्सिटीस में संस्कृत पढ़ाई जाती है। लेकिन हमें हमारे ही देश में अपनी ही भाषा संस्कृत को बचपन से ही एक गौण भाषा के रूप में बताया गया है। हमें ये बताया गया है कि संस्कृत वो पढ़ते हैं जो पढ़ने में कमजोर हैं। ये सब किया कराया है अंग्रेजों का और 600-700 सालों की गुलामी का।

अंग्रेजों ने हमारे देश की चीजों को या तो नष्ट किया, या यहाँ से लूटकर अपने देश ले गए या कानून बनाकर हमारी स्वदेशी चीजों को बैन किया या हमारी चीजों का मजाक उड़ाया ताकि हम हीन भावना से ग्रसित हो सके और हम अपनी ही चीजों को तुच्छ समझें।
Johann Gottfried Herder:
जर्मन दार्शनिक गॉटफ्राइड वॉन हर्डर (Johann Gottfried Herder) ने हिंदू धर्मग्रंथ (Hindu Scriptures) के बारे में कहा था, “मानव जाति की उत्पत्ति का पता भारत में लगाया जा सकता है जहां मानव मन को ज्ञान और सद्गुण का पहला आकार मिला।”
जर्मन दार्शनिक शोपेनहावर (Arthur Schopenhauer) लिखते हैं, “पूरे विश्व में उपनिषदों के समान लाभकारी और इतना उन्नत कोई अध्ययन नहीं है। यह मेरे जीवन की सांत्वना है; यह मेरी मृत्यु की सांत्वना होगी ।।”
Erwin Schrödinger:
श्रोडिंगर (Erwin Schrödinger), ऑस्ट्रियाई सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी, जिन्होंने पदार्थ के तरंग सिद्धांत और क्वांटम यांत्रिकी के मूल सिद्धांतों में योगदान दिया, उपनिषदों से बहुत प्रभावित थे। द वायर में छपे एक आर्टिकल में तो यहाँ तक लिखा है कि श्रोडिंगर ने अपनी कब्र पर ये लिखवाया है, “So all Being is an one and only Being; And that it continues to be when someone dies; [this] tells you, that he did not cease to be.” अर्थात सब कुछ एक है और एक ही है। यह तब भी रहता है जब कोई मर जाता है। यह बताता है कि वह निरंतर और सतत है। श्रोडिंगर का मानना था कि पश्चिमी विज्ञान में पूर्वी विचारधारा यानि भारतीय ज्ञान को सावधानीपूर्वक समाहित करने की जरूरत है।
Niels Bohr:
नील्स बोर, जिन्होंने क्वांटम सिद्धांत की कोपेनहेगन इन्टरप्रिटेशन प्रस्तावित की थी, वो कहा करते थे कि, “I go to the Upanishad to ask questions.” यानि कि मैं प्रश्न पूछने के लिए उपनिषदों के पास जाता हूँ। “Quantum concepts will now no longer appearance ridiculous to humans who’ve studied Vedanta.” यानि वेदांत का अध्ययन करने वाले लोगों को अब क्वांटम अवधारणाएं हास्यास्पद नहीं लगेंगी ।
“ओम पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।”
यह ईशा उपनिषद (Hindu Scripture) का मंत्र है जिसका अर्थ है कि वह ब्रह्म अनंत है और यह ब्रह्मांड अनंत है। अनंत से अनंत की प्राप्ति होती है। अनंत ब्रह्मांड की अनंतता लेते हुए वह ब्रह्म अनंत के रूप में अकेला रहता है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि बाहरी संसार पूर्ण है यानि दिव्य चेतना से परिपूर्ण है । आंतरिक संसार भी पूर्ण है यानि दिव्य चेतना से परिपूर्ण है। पूर्ण से पूर्ण प्रकट होता है अर्थात ईश्वरीय चेतना की पूर्णता से विश्व प्रकट होता है। पूर्ण से पूर्ण लेने पर पूर्ण वास्तव में बनी रहती है क्योंकि दिव्य चेतना अद्वैत और अनंत है।
Oppenheimer & Bhagwat Geeta Connection:-
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः । ।

यह श्लोक है भगवद गीता (Hindu Scripture) का है। कुरुक्षेत्र में जब श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को दिव्य दृष्टि प्रदान कर अपना विराट दिव्य स्वरुप दिखाया था तो उस विराट स्वरूप को देख कर अर्जुन ने यह श्लोक कहा था।
जिसका अर्थ है, यदि आकाश में एक साथ हजारों सूर्य उदित हो जाए, तो भी उन सबका प्रकाश मिलकर उस महात्मा (विराट् रूप परमात्मा) के प्रकाश के समान शायद ही हो ।।
इसके बाद अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से विनिती की थी कि प्रभु अब आप सामान्य स्वरूप में लौट आयें, क्योंकि आपके विराट स्वरूप को देखकर मुझे डर लग रहा है। यदि कभी आसमान में एक के बजाय कई सूर्य दिखाई दें या बहुत ही ज्यादा प्रकाश पुंज दिखाई दे तो यह कोई शुभ संकेत नहीं, बल्कि विनाश या प्रलय का संकेत होगा। क्योंकि महाभारत और हिरोशिमा नागासाकी में ऐसा ही हुआ था। ओपेनहाइमर (Oppenheimer: American physicist) ने भगवद गीता का यह श्लोक बोला, क्योंकि उनको मालूम हो गया था कि परमाणु बम से बहुत बड़ा विनाश होने वाला है। क्या आप जानते हैं कि ओपेनहाइमर ने भगवद गीता को अच्छी तरह समझने के लिए खुद संस्कृत भाषा सीखी थी? ताकि भगवद गीता के सभी श्लोकों का उन्हें सही अर्थ मालूम हो सके।
क्या आप संस्कृत भाषा सीखना चाहते हैं?