क्या वैदिक साइंस Advanced था?
क्या वैदिक साइन्स (Vedic Science) सच में एडवान्स था? क्या मॉडर्न साइन्स के अधिकांश सिद्धांत सनातन हिंदू धर्म के ग्रंथ शास्त्रों में पहले से ही लिखे हुए हैं? इस श्रृंखला का ये दूसरा भाग है।
Vedic Science Was Advanced (Proof No. 1)
Surgery First Invented in India: सबसे पहले बात करते हैं शल्य चिकित्सा की, जिसे इंग्लिश में सर्जरी कहते हैं। महर्षि सुश्रुत (Maharshi Sushruta) प्राचीन भारत के महान चिकित्सा शास्त्री एवम शल्य चिकित्सक थे। वे आयुर्वेद के महान ग्रन्थ सुश्रुत संहिता के प्रणेता हैं। इनको शल्य चिकित्सा का जनक (Father of Surgery) भी कहा जाता है। इनका जन्म 600 ईसा पूर्व में हुआ था। सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा यानि सर्जरी के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझाया गया है। शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत जी ने 101 तरह के उपकरणों का वर्णन किया है। ये उपकरण शल्य क्रिया की जटिलता को देखते हुए बनाए गए थे।
माना जाता है कि उन्होंने हिंदू चिकित्सा के देवता भगवान धन्वंतरि से काशी में शल्य चिकित्सा सीखी थी। वह प्लास्टिक सर्जरी के शुरुआती प्रर्वतक थे, जिन्होंने उत्तरी भारत के वर्तमान शहर वाराणसी के क्षेत्र में गंगा के तट पर सर्जरी सिखाई और अभ्यास किया। उनके द्वारा लिखे गए खंडों की श्रृंखला को ही सुश्रुत संहिता के रूप में जाना जाता है। यह सबसे पुराने ज्ञात सर्जिकल ग्रंथों में से एक है। इसमें कई बीमारियों की जांच, उपचार और निदान के साथ-साथ कॉस्मेटिक सर्जरी, प्लास्टिक सर्जरी के विभिन्न रूपों को करने की प्रक्रियाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है।
आइए उनके ग्रंथ सुश्रुत संहिता के कुछ संस्कृत सूत्रों का हिन्दी अनुवाद समझते हैं।
तत्र भ्रूगण्डशङ्खललाटाचिपुटौष्ठ दन्तवेष्टकताकुक्षि वङ्क्षणेपु तिर्यक् छेद उक्तः।।
अर्थात भ्रू, कपोल, शङ्खप्रदेश ( कनपटी ), ललाट, आंखों के पलक, ओष्ठ, दन्तवेष्ट ( मसूडे ), कक्षा (कांख ), कुक्षि (उदर) और वंक्षण ( ऊरुसन्धि ) इन स्थानों में तिरछा छेदन करना चाहिये।
अन्यथा तु सिरास्नायुच्छेदनम्, अतिमात्रं वेदना, चिराद् व्रणसंरोहो, मांसकन्दी प्रादुर्भावश्चेति।।
अर्थात उपर्युक्त विधि के अनुसार चीरा न लगाने से सिरा और स्नायु के छेदन की सम्भावना रहती है, पीड़ा अधिक होती है, चिरकाल (देरी) से व्रण भरता है और मांस की गांठ उत्पन्न हो जाती है।
यन्त्रशतमेकोत्तरम्, अन्न हस्तमेव प्रधानतमं यन्त्राणामवगच्छ। किं कारणम् ? यस्माद्धस्ताद्यते यन्त्रा णामप्रवृत्तिरेव, तदधीनत्वाद् यन्त्रकर्मणाम्।।
अर्थात यन्त्र एक सौ एक होते हैं। यहां हाथ को ही प्रधान यन्त्र जानना चाहिये क्योंकि हस्त के विना यन्त्रों का प्रयोग असम्भव है। यन्त्रकर्म हाथ के ही अधीन होते हैं।
तत्र चतुर्विंशतिः स्वस्तिकयन्त्राणि, द्वे संदेशयन्त्रे, द्वे एव तालयन्त्रे, विंशतिर्नाड्य, अष्टाविशतिः शलाकाः, पञ्चविंशतिरुपयन्त्राणि।
अर्थात उनमें से स्वस्तिक यन्त्र २४ प्रकार के, सन्देश यन्त्र २ प्रकार के, ताल यन्त्र भी २ ही प्रकार के, नाडी यन्त्र २० प्रकार के शलाका यन्त्र २८ प्रकार के और उपयन्त्र २५ प्रकार के होते हैं।
समाहितानि यन्त्राणि खरश्लक्ष्णमुखानि च । सुढानि रूपाणि सुग्रहाणि च कारयेत्।।
अर्थात ‘यन्त्रों को समाहित ( प्रमाणबद्ध, न अधिक मोटे और न अधिक छोटे ), आवश्यकतानुसार कोई खुरदरे और कोई मुलायम मुख वाले, अत्यन्त मजबूत, सुन्दर और जिन्हें ठीक तरह से हाथ में पकड़ सकें ऐसे बनावें।
आगन्तुजे भित्रनाडीं शत्रेणोत्कृत्य यन्त्रतः, जम्ष्ठेनाग्निवर्णेन तप्तया वा शलाकया । दद्यथोक्तं मतिमांस्तं व्रणं सुसमाहितः । कृमिघ्नं च विधिं कुर्याच्छल्यानयनमेव च।
अर्थात बुद्धिमान् वैद्य आगन्तुक भगन्दर में नाडी (सावमार्ग ) को शस्त्र द्वारा यत्नपूर्वक काटकर, जामुन के फल के समान अग्निवर्णे शलाकायन्त्र अथवा तालाका से पूर्वकथित विधि के अनुसार उस व्रण को जलावे। व्रण के अन्दर से शल्य निकालने का उपाय तथा कृमिनाशक क्रिया करें।।
हमने केवल कुछ ही लाइन उद्धृत किए हैं, आप चाहें तो सुश्रुत संहिता को डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं।
क्या आप जानते हैं कि ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न स्थित रॉयल ऑस्ट्रेलिया कॉलेज ऑफ सर्जंस (आरएससीएस) में महर्षि सुश्रुत की मूर्ति लगी हुई है। यह कॉलेज उन डॉक्टरों को ट्रेनिंग देने के लिए जाना जाता है जो सर्जरी में महारत हासिल करना चाहते हैं। आरएससीएस ने ऑस्ट्रेलिया में हिंदु काउंसिल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि कॉलेज की बिल्डिंग में महर्षि सुश्रुत की मूर्ति उनके लिए गौरव की बात है।
जून 2018 में महर्षि सुश्रुत जी की मूर्ति को यहां पर लगाया गया था। इस कॉलेज में चिकित्सा की बहुत प्राचीन किताबें हैं जिनमे महर्षि सुश्रुत की तरफ से लिखी गई ‘सुश्रुत संहिता’ का इंग्लिश ट्रांसलेशन भी मौजूद है, जो सन् 1907 में आया था। कॉलेज की तरफ से कहा गया है कि सुश्रुत, भारतीय मेडिसन और सर्जरी के क्षेत्र की नींव रखने वाले व्यक्ति थे। इस बात को कोलंबिया यूनिवर्सिटी इरविंग मेडिकल सेंटर ने भी स्वीकार किया है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी इरविंग मेडिकल सेंटर ने कहा है कि भारत में 2500 साल पहले भी महर्षि सुश्रुत को प्लास्टिक सर्जरी की जानकारी थी। इससे proof हो जाता है कि भारत का Vedic Science उन्नत था।
Vedic Science Was Advanced (Proof No. 2)
अब बात करते हैं डार्विन के विकास क्रम की (Theory of Evolution)। डार्विन एक जीव वैज्ञानिक था। उसने जीवन विकास क्रम की अपनी थ्योरी दी कि कैसे हजारों वर्षों के विकास क्रम में बंदर इंसान बन गए। इस दुनिया का हर इंसान अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुसार अपनी परिकल्पना दे सकता है। डार्विन कोई सर्वज्ञाता नहीं था, और ना ही कोई इंसान सर्वज्ञाता हो सकता है। बहुत से लोगों ने उसकी थ्योरी को माना, लेकिन ऐसा भी नहीं की सभी ने माना हो । । अगर विकास क्रम की दौड़ में इंसान बंदर से निकले तो बंदर कहाँ से आये? और विकास क्रम केवल बंदरों का ही क्यों हुआ ?
दूसरे जीवों का क्यों नहीं हुआ ? कुत्तों में, तोते में, डॉलफिन आदि जीवों में भी समझने की शक्ति होती है। इन जीवों का करोड़ों वर्षों के विकास क्रम में विकास क्यों नहीं हुआ ? वैज्ञानिक कहते हैं कि तोते का आईक्यू लेवल पाँच साल के इंसानी बच्चे जितना होता है, तो तोते अभी तक पक्षी रूप में क्यों हैं ?? इंसानों जैसा विकास उनमें क्यों नहीं हुआ?? याद रखिए कि डार्विन की यह केवल एक परिकल्पना मात्र थी जिसे आज तक विज्ञान किसी लैब में या किसी अन्य चीज के द्वारा प्रुफ नहीं कर पाए, ना ही डार्विन ने किसी ऐसी मशीन का आविष्कार किया जिससे बंदर को इंसान में परिवर्तित किया जा सके।
वास्तविक बात तो यह है कि जिस प्रकार सभी जीव जंतु प्रारम्भ से अपने मौलिक रूप में हैं उसी प्रकार हम इंसान भी प्रारम्भ से इंसान ही हैं। यह बात हमारे पुराणों में लिखी है। मत्स्य पुराण में लिखा है कि सृष्टि से पहले पूर्व काल में इस संसार में कुछ नहीं था । यह संसार अंधकार से व्याप्त था। कोई पदार्थ दृष्टिगत नहीं था। फिर परब्रह्म परमात्मा ने सृष्टि रचने की इच्छा की, और सर्वप्रथम परमात्मा ने जल उत्पन्न किया। फिर उसमें अपने वीर्य रूप शक्ति का आधान किया।
इससे देवता, असुर, मनुष्य आदि संपूर्ण जगत जैसे आकाश, वायु, अग्नि ,पृथ्वी, वनस्पति, पशु पक्षी आदि अन्य जीव जंतु उत्पन्न हुए। भगवान से जल की उत्पत्ति हुई है, इसलिए जल को नार भी कहते हैं और उन परमात्मा को नारायण। मॉडर्न साइन्स ने भी इसी बात को प्रुफ़ किया है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पति सबसे पहले पानी में हुई। पानी में बहुत सूक्ष्म एक कोशिकीय जीव से द्वि-कोशिकीय जीव पैदा हुए और फिर द्विकोशिकीय जीव से बहुकोशिकीय जीव बने। इससे भी proof हो जाता है कि भारत का Vedic Science उन्नत था।
Vedic Science Was Advanced (Proof No. 3)
गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) Was First Discovered By Maharshi Kanad:- कहते हैं कि एक बार आईजैक न्यूटन अपने सेब के बगीचे में बैठे थे कि एक सेब उनके सिर पर आ गिरा। इस घटना से ही उन्हें पहली बार पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के बारे में पता चला। गुरुत्वाकर्षण के बारे में सबसे पहले हमारे देश के ऋषि कणाद जी ने अपनी पुस्तक वैशेषिका सूत्र में लिखा है।
“संयोगाभावे गुरुत्वात पतनम।”
कोई भी वस्तु जब तक कही न कहीं उसका जुड़ाव है वो नीचे नहीं गिरेगी। जैसे आम या सेब का टहनी से संयोग। जब तक संयोग है तब तक पृथ्वी में कितना भी आकर्षण है वो वस्तु को अपनी तरफ खींच नहीं सकती। जैसे ही संयोग का अभाव हुआ गुरुत्व के कारण वस्तु खुद पृथ्वी पर गिर जाएगी।
“अपां संयोगाभावे गुरुत्वात पतनम।”
अर्थात संयोजन के अभाव में पानी का गिरना गुरुत्वाकर्षण के कारण होता है। गुरुत्व शब्द सबसे पहले वैशेषिका सूत्र में ही पढ़ने को मिलता है। वैशेषिका सूत्र ईसा मसीह से भी पहले का लिखा हुआ दर्शन है, जबकि न्यूटन तो १६ वीं सदी में पैदा हुए थे। इससे भी proof हो जाता है कि भारत का Vedic Science उन्नत था।
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